Saturday, May 2, 2009

तुषार राहेजा की "एनीथिंग फॉर यू माम"

हमारे पतिदेव ने जब यह किताब खरीदी तो हमने किताब का शीर्षक देख ,इसे उनका "मिडिल एज सिंड्रोम" माना और कोई विशेष उत्साह जाहिर नही किया. लगा ज़रूर किसी वीर पुरुष ने अपने वीरोचित गुणों का बखान किया होगा. मुझे क्या? काफ़ी दिनों तक किताब को घूरने के बाद मैंने इसे पढ़ना शुरू किया. मज़ा आ गया.

इससे पहले मैंने चेतन भगत, अभिजीत भादुड़ी और बाद में दूर्योजय दत्ता और मानसी आहूजा की किताबें भी पढ़ी हैं. पर इस किताब का मज़ा ही कुछ और ही है. कहानी फिल्मी ढंग से ही चलती रहती है. घटनाएँ भी फिल्मी ढंग से घटित होती रहती हैं. अब आप कहेंगे तो फिर अच्छा क्या है?
तो सुनिए- ख़ासियत है कथाकार का अंदाज़े बयान.

तुषार ने तेजस और श्रेया की प्रेमकहानी को ताज़े और रुचिकर ढंग से प्रस्तुत किया है. मुझे सबसे ज़्यादा जिस बात ने छुआ, वह है कथानायक का नायिका, अपनी बहन एवं अन्य पात्रों के प्रति सम्मान. जीवन मूल्यों के प्रति आदर. कथा में हास्य रस का यथोचित सटीक और सुंदर समावेश किया गया है. विश्वाश कीजिए अगर आप किसी पूर्वाग्रह से न ग्रसित हों तो ,आप किताब पढ़ते-पढ़ते अचानक ही खिलखिला कर हँस पड़ेंगे.

आपने फिल्म "मुन्नाभाई एम.बी.बी.एस." तो देखी ही होगी. सब कुछ फिल्मी था पर कहानी से जुड़े आदर्श और भावनाएँ हमें वाह-वाह करने को मज़बूर कर देते हैं. कुछ ऐसा ही मुझे इस कहानी को पढ़ कर लगा.
तुषार राहेजा कथाकार के रूप में सफल साबित हुए हैं. यह उनकी पहली पुस्तक है जिसे उन्होंने आई. आई. टी. दिल्ली में इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग करते हुए फाइनल ईयर में लिखा. उनको इस किताब के सफल लेखन के लिए बधाई.

सृष्टि प्रकाशन की इस किताब का मूल्य मात्र सौ रुपये है.
कुछ पाठकों ने पुस्तक की विषयवस्तु अति साधारण होने का दोष मढ़ा है. मैं उन्हें बस इतना कहूँगी की ज़िंदगी का असली मज़ा छोटी-छोटी बातों को जी-भर कर जी लेने में है. बड़े- बड़े आदर्शों को नेताओं के लिए छोड़ दीजिए.

7 comments:

Manish Kumar said...

किताब के कुछ रोचक अंशों को बाँटें तो पाठकों की उत्सुकता और बढ़ेगी।

upendra said...

I agree with u.Life brings simple pleasures to us everyday.It is up to us to make them wonderful memories.

MAYUR said...

किताब के अंश ज़रूर बन्तियेगा इंट्रेस्टिंग है

अच्छा लिखा है आपने , शानदार पोस्ट और ख़ूबसूरत ब्लॉग ।

इसी तरह लिखते रहें , हमें भी उर्जा मिलेगी ,

धन्यवाद

मयूर

अपनी अपनी डगर

अविनाश वाचस्पति said...

अर्चना जी
एक नुक्‍कड़ यहां भी है
नुक्‍कड़ नुक्‍कड़ नुक्‍कड़
मुझे तो आपका ब्‍लॉग
बेहद पसंद आया।

शायद आपको भी पसंद आए
यदि पसंद आए तो
अवश्‍य बतलाएं
http://nukkadh.blogspot.com/

admin said...

छोटी छोटी बातों की बडी किताब से परिचित कराने के लिए आभार।

SBAI TSALIIM

surendra said...

i couldn't go beyond first few pages of the book. but looking at the review, i may attempt once more. your blog is certainly an excellent attempt on your part. please put some more stuff for light consuption.

कुश said...

कमाल है..! ये किताब मुझे बहुत पसंद है.. जब मैं इसे पढ़ रहा था तो मुझे लगा इस पर तो ज़रूर फिल्म बननी चाहिए.. कहानी में हर थोडी देर के बाद एक और ट्विस्ट रोचकता बनाये रखता है.. जब किताब ख़त्म होती है तो ऐसे लगता है इतनी जल्दी क्यों ख़त्म हो गया सब.. अभी तो और आगे बढाया जा सकता था.. तुषार राहेजा में काफी संभावनाए है.. उम्मीद है जल्द ही उनका अगला नोवेल आएगा.. वैसे इस ब्लॉग पर मेरा ये तीसरा कमेन्ट है और अब तक की तीनो पोस्ट बिलकुल मेरी पसंद की है.. कहना पड़ेगा आपका टेस्ट बहुत बढ़िया है..