Tuesday, May 5, 2009

शौर्य


एक आम भारतीय होने के नाते फिल्में देखने का नशा मेरे खून में है.स्कूल में ना जाने कितने लंच-ब्रेक फिल्मों की कहानी किश्तो में सुनते-सुनाते गुज़री. हर फिल्म मेरे लिए एक नई कहानी थी. मनोरंजन के इस इकलौते साधन का आनंद अनूठा था. समय बीता और आया कलात्मक फिल्मों का दौर जैसे- रुका हुआ फ़ैसला, पार, adhaarashilaa..............आदि..आदि. इन फिल्मों के संवादों का एक-एक ज़ुमला हम बड़ी तन्मयता से सुनते थे. टी.वी. के निर्माता जे. एल. बेयर्ड. जी के प्रति हमारा सम्मान दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया.
मेरी दृष्‍टि में वर्तमान काल हिन्दी फिल्मों का स्वर्णकाल है. आज ऐसे कई निर्देशक ऐसी फिल्में बनाने में सक्षम हैं जो वे अपने आत्मिक संतोष के लिए बना रहे हैं. सबसे खुशी की बात यह है कि ऐसी फिल्मों की लंबी कतार लगी हुई है. फिल्म-प्रेमियों को सजग रहना पड़ता है.

कई फिल्में हॉल तक पहुँच नहीं पातीं. हाल में ही मैंने एक फिल्म देखी " शौर्य". यह फिल्म 2008 में बनाई गई है. इस फिल्म के निर्देशक हैं समर ख़ान. फिल्म एक वकील और एक सैनिक के शौर्य अर्थात वीरता की कहानी है जो सत्य के कुरूप चेहरे को देख अपनी आँखें नहीं बंद कर लीं बल्कि अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हुए. समाज के प्रति अपना दायित्व निभाया.
फिल्म की कहानी का रेखाचित्र कुछ ऐसा है- श्रीनगर में नियुक्त कप्‍तान ज़ावेद ख़ान (दीपक डोब्रियाल) पर अपने सहयोगी की हत्या करने का इल्ज़ाम लगाया है . मेजर सिद्धांत (राहुल बोस) अपने प्रिय मित्र मेजर आकाश (ज़ावेद ज़ाफ़री) के कहने पर बड़ी अनिच्छा से ज़ावेद ख़ान के सरकारी वकील बनने को तैयार हो जाते हैं. मेजर सिद्धांत एक पत्रकार काव्या शास्त्री (मिनिशा लांबा ) से मिलने के बाद केस में दिलचस्पी लेते हैं. केस के अभियुक्‍त ज़ावेद ख़ान कुछ भी कहने को तैयार नहीं होते. सिद्धांत तफ्तीश के दौरान कई पदकों के विजेता ब्रिगेडियर रुद्र प्रताप सिंह (के. के. मेनन ) से मिलते हैं. रुद्र प्रताप की दुनिया की परिभाषाएँ अलहदा और दिल को दहला देने वाली हैं. सिद्धांत की सत्य की तलाश ब्रिगेडियर को कटघरे तक पहुँचा देती है. ज़ावेद ख़ान निर्दोष सिद्ध होता है.
फिल्म के गीतकार जावेद अख़्तर और संगीतकार अदनान सामी हैं. के. के मेनन और राहुल बोस और दीपक डोब्रियाल ने अपनी-अपनी भूमिकाओं के प्रति न्याय किया है. फिल्म का कथानक भी प्रभावी है. सब कुछ ठीक था जब तक मैंने 1992 में बनी हौलिवुड फिल्म "ए फ़्यू गुड मेन" नहीं देखी थी.

शौर्य इस हौलिवुड फिल्म से प्रेरित होकर ही बनाई गई है. दिल यह देखकर थोड़ा छोटा अवश्य हो गया. फिर भी फिल्म सशक्‍त है. राहुल बोस पर फिल्म का निर्देशन हथियाने की तोहमत भी लगाई गई थी. जिसे उन्होंने पूर्णतया झूठा बताया. अंततः मेरी राय में फिल्म अच्छी है ज़रूर देखें.

प्रस्तुत है फिल्म का ट्रेलर-

5 comments:

Udan Tashtari said...

अब देखते हैं..वरना तो टालने के मूड में थे. :)

upendra said...

Shaurya is an extremely thought-provoking and gripping tale which not only exposes viewers to some disturbing truths but also deals with sensitive issues of communal angst and Indian Muslims identity with utmost realism and balance.It beautifully depicts the isolation of Indian Muslim through the eyes of a persecuted individual.Intense court-room drama is the high point of the moview. A must watch for those who like meaningful cinema

नीरज गोस्वामी said...

शौर्य मेरे कलेक्शन में है और होलीवुडकी प्रसिद्द फिल्म की भौंडी नक़ल है...फिर भी के.के.मेनन के अभिनय के लिए ये फिल्म देखी जा सकती है...
नीरज

कुश said...

परसों ही मेरे एक मित्र के साथ इस फिल्म के बारे में चर्चा हो रही थी.. मुझे ये फिल्म के के मेनन की बेहतरीन अदाकारी के लिए ज्यादा पसंद है..

5 FACTS IN THE WORLD.....!!! said...

truelly ausome maam ..... aapko to books likhna chahiye .... uski gaurentee hum lete hain ki use hum baghbaan se bhi badi hit banaenge!!!