वर्षों पहले जब मैने इस राज्य में कदम रक्खा था,ओडीषा राज्य के बारे में बस इतनी ही जानकारी थी
कि इसकी राजधानी कटक की जगह भुबनेस्वर हो गई है और हिंदुओं के चार पवित्र धामों में से एक पुरी इसी राज्य में स्थित है. हमारे पतिदेव उस वक़्त ढेंकनाल नामक जगह पर ट्रेनिंग कर रहे थे. उस वक़्त हम इसी उधेड़बुन में रहते थे, हो न हो नाम सही लिखने में उनसे ज़रूर कोई ग़लती हो गई होगी. ,दूसरी जानकारी यह थी
के शहर के नाम से भी जाना जाता है.
हाल में ही इसशहर की दीवारें भी बोल उठी हैं. है न हैरानी की बात! यह संभव हुआ भुबनेस्वर म्यूनिस्पल कार्पोरेशन के ज़बर्दस्त आइडिया और कलाकारों की मेहनत के कमाल से. जिसके कारण यहाँ की दीवारों पर आपको बेतरतीब पोस्टर और पान की पीक आदि की जगह सुरुचिपूर्ण बनाई गई कलात्मक अभिव्यक्तियाँ मिलेंगी. जो इस राज्य की संपन्न कला, रहन-सहन ,वेशभूषा आदि की जानकारी देती हैं.
सबसे पहले शुरुआत की गई 'सउरा पेंटिंग' से. एक नमूना देखिए
कि इसकी राजधानी कटक की जगह भुबनेस्वर हो गई है और हिंदुओं के चार पवित्र धामों में से एक पुरी इसी राज्य में स्थित है. हमारे पतिदेव उस वक़्त ढेंकनाल नामक जगह पर ट्रेनिंग कर रहे थे. उस वक़्त हम इसी उधेड़बुन में रहते थे, हो न हो नाम सही लिखने में उनसे ज़रूर कोई ग़लती हो गई होगी. ,दूसरी जानकारी यह थी
कि मुझे शादी के बाद जयपुर जाना होगा. हमारे सिलेबस में जयपुर एक ही था. जब एस.टी.डी. कोड मालूम करने के लिए टेलीफ़ोन डायरेक्टरी खोली तब आँखें खुलीं कि जयपुर और जैपुर दो जगहें हैं. जैपुर की कहानी फिर सही. भुबनेस्वर से आप सभी परिचित हैं. इस शहर को मंदिरों
के शहर के नाम से भी जाना जाता है.
हाल में ही इसशहर की दीवारें भी बोल उठी हैं. है न हैरानी की बात! यह संभव हुआ भुबनेस्वर म्यूनिस्पल कार्पोरेशन के ज़बर्दस्त आइडिया और कलाकारों की मेहनत के कमाल से. जिसके कारण यहाँ की दीवारों पर आपको बेतरतीब पोस्टर और पान की पीक आदि की जगह सुरुचिपूर्ण बनाई गई कलात्मक अभिव्यक्तियाँ मिलेंगी. जो इस राज्य की संपन्न कला, रहन-सहन ,वेशभूषा आदि की जानकारी देती हैं.
सबसे पहले शुरुआत की गई 'सउरा पेंटिंग' से. एक नमूना देखिए
सउरा जाति भारत की प्राचीन जनजातियों में से एक है. ओडिषा की इस जनजाति द्वारा बनाई जाने वाली इस चित्रकला को सउरा पेंटिंग के नाम से जाना जाता है. यह चित्रकला इनके जीवन का झरोखा हैं. जिनमें उनकी विविध अभिव्यक्ति देखने को मिलती हैं. यह चित्रकारी महाराष्ट्र की वरली चित्रकारी से बहुत मिलती जुलती है. दूसरे शब्दों में यह चित्रकला सउरा जाति के विश्वास और दर्शन का आईना हैं.
इतना सब कुछ कह जाती हैं भुबनेस्वर की ये अपरिचित दीवारें.