कैनवास पर रंगों से खेलने का शगल हमें भी रहा है. जब आमंत्रण मिला तो हम खुशी से फूले नहीं समाए . इतने फूले कि पिचक गये. हमने विनम्रता से उनको हमें याद करने का शुक्रिया अदा किया और कहा बस यही काफ़ी है. पर राम भला करे हमारी मित्र का जिसने हमें सदबुद्धि कि चलो वहाँ बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. हम भी वो जीव हैं कि सीढ़ी दिखी तो पाँव बढ़ा लिए.
Sunday, March 15, 2009
रंगों का उत्सव: अंतराष्ट्रीय महिला दिवस भुवनेश्वर
रंगों का उत्सव -आर्ट एरा इस वर्ष भुवनेश्वर मे
अंतराष्ट्रीय दिवस मनाने का तरीक़ा कुछ अलहदा रहा. इस अवसर पर राष्ट्रीय स्तर पर आठ मार्च को महिला चित्रकारों को आमंत्रित किया गया. कलाकारों को तीन दिनों का समय ,कैनवास और ऐक्रीलिक रंग प्रदान किए गये. विषय था --महिला. अपनी कल्पनाओं और भावनाओं को कलाकारों ने कैनवास पर उकेरना आरंभ कर दिया.
कैनवास पर रंगों से खेलने का शगल हमें भी रहा है. जब आमंत्रण मिला तो हम खुशी से फूले नहीं समाए . इतने फूले कि पिचक गये. हमने विनम्रता से उनको हमें याद करने का शुक्रिया अदा किया और कहा बस यही काफ़ी है. पर राम भला करे हमारी मित्र का जिसने हमें सदबुद्धि कि चलो वहाँ बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. हम भी वो जीव हैं कि सीढ़ी दिखी तो पाँव बढ़ा लिए.
कल्पना की तश्तरी पर उड़ते- उड़ते हम भी वहाँ पहुँच गये. सभी कलाकारों ने अपना परिचय दिया . कोई पुणे के कला महाविद्यालय से था तो कोई दिल्ली ,कोई बालेश्वर का तो कोई भुवनेश्वर कला महाविद्यालय का भूतपूर्व या फिलहाल अध्ययनरत स्नातक अथवा स्नातकोत्तर छात्र. सबको देख हम भीतर ही भीतर छोटे होते गये. हमने अपने दाँत निपोरे और बताया कि हम तो बस योहीं लकीरें खींचने का शौक रखते हैं.
आयोजकों ने दो आकार के कैनवास उपलब्ध कराए थे 4'-3' और 3'-2.5' हमने बड़ी उमंग से बड़ा वाला कैनवास चुना. निहारा . खुशी और जोश से पेन्सिल और रबर निकाली और शुरू हो गये. कुछ समय बाद इधर उधर नज़र दौड़ाई तो पाया सभी के हाथों में ब्रश थे. हमने मन ही मन अपने आप को कोसा .सभी कलाकारों के चित्र नायाब थे. उनके रंगने की तकनीकों को देख हम हैरान थे.इस कार्यक्रम के संयोजक श्री तारकांत परीदा जी का शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होने महिलाओं के सृजनशील स्वभाव को एक नया आयाम दिया. अपनी पेंटिंग भी जल्दी जल्दी ख़तम की. इन कलाकारों की कृतियों का आप भी लुत्फ़ उठाइए. ये मैं हूँ अपनी तस्वीर के साथ.


कैनवास पर रंगों से खेलने का शगल हमें भी रहा है. जब आमंत्रण मिला तो हम खुशी से फूले नहीं समाए . इतने फूले कि पिचक गये. हमने विनम्रता से उनको हमें याद करने का शुक्रिया अदा किया और कहा बस यही काफ़ी है. पर राम भला करे हमारी मित्र का जिसने हमें सदबुद्धि कि चलो वहाँ बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. हम भी वो जीव हैं कि सीढ़ी दिखी तो पाँव बढ़ा लिए.
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कुछ रंग और रेखाएँ
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2 comments:
Beautiful colaz and fine paintings you need not to feel lesser.I congratulate you.
Nice to hear about such a good book.
Thanks
Dr.Bhoopendra
i felt elated. thanx
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