जब आपको किताबों से प्रेम हो और आप पढ़ ना पाएँ तो एक छटपटाहट का अनुभव होता है. ऐसी ही स्थिति में मैने एक पतली किताब उठाई और पढ़ने बैठ गई.किताब ख़त्म हो गई पर छटपटाहट न गई. थोड़ी और हिम्मत की और अपेक्षाकृत इस मोटे उपन्यास को पढ़ना शुरू किया . यकीन मानिए यह किताब हाथ से छोड़ते न बनी .कथाकार ख़ालेद कोरैशी जी का लिखा यह उपन्यास "द काइट रनर" जब रुलाता है तो आँसू थमने का नाम ही नही लेते.
यह कहानी अफ़ग़ानिस्तान के राजतंत्र ,रूसी हमले ,पाकिस्तान भागते शरणार्थी और तालिबान शासन की पृष्ठभूमि में रची गई है.यह उपन्यास दो बच्चों की मित्रता रूप में काबुल की सरजमीन में पनपा. इन दो बच्चों में से एक है आमिर . आमिर एक पश्तून ,प्रतिष्ठित,उदारवादी, और धनाढ्य पिता की संतान है. वहीं हसन आमिर के पिता की सेवा करने वाले हाज़रा नामक निम्न-जाति के अली का बेटा है. नियति ऐसी थी कि दोनों की धाय माँ एक ही थी. वे एक ही घर में पले-बढ़े किंतु दो अलग ज़हान के लिए. दोनों के जीवन की घटनाओं के रेशों में गुँथी यह कहानी जीवन में दुर्भाग्य, त्रासदी और सभ्यता के बदलते मापदंडों पर नज़र डालने को मज़बूर कर देती है.
रूसी आक्रमण के दौरान आमिर अपने पिता के साथ पाकिस्तान होते हुए अमेरिका के फेर्मोन्ट आ पहुँचता है.उसे लगता है की वह अपना अतीत पीछे छोड़ आया है. वह अपने पिता के साथ नई ज़िंदगी की ज़द्द-ओ-ज़हद में जुट जाता है. पर उसका अपने दोस्त के प्रति किया अविश्वास -भाव उसे अपने अपराध- बोध से उबरने नहीं देता. ज़िंदगी उसे फिर से एक बार मौका देती है ,जब वह उऋण हो सके.
यह उपन्यास दोस्ती, विश्वासघात , पिता और पुत्र के मध्य रिश्तों के नये कोणों को चित्रित करता है. अफ़ग़ानिस्तान में चल रहे क्रूर नर्तन की झलक इस उपन्यास में देखने को मिलती है.जो हृदय -विदारक है. सभ्यता के असभ्य कगार हृदय को झिझोड़ देते हैं. ख़ालेद होसैनी कहानी कहने की अदभुत क्षमता रखते हैं. जो स्वयं अफ़गानी हैं .जिन्होने पीड़ा से गुज़रते अपने वतन के नये सकारात्मक भविष्य की ओर इशारा करते हुए कथा का सफलतापूर्वक समापन किया है.
इस उपन्यास पर गत वर्ष मार्क फॉरेस्टर ने फिल्म भी बनाई थी. आपको जान कर आश्चर्य होगा कि आस्कर अवार्ड में ओरिजिनल स्कोर के लिए स्ल्मडाग मिलियनायर के साथ इस फिल्म को भी नॉमिनेट किया गया था. इस फिल्म का ट्रेलर आप यहाँ देख सकते हैं.
ये हैं ख़ालेद कोरेशी जो अपने उपन्यास के बारे में बता रहे हैं.
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ज़किरिया इब्राहिमी जिन्होने बाल आमिर के पात्र को अभिनीत किया,वे अपनी सलामती की खातिर चार महीने दुबई में रुके. कई धमकियाँ पाकर वे वापस काबुल में अपने घर में नज़रबंद जैसी ज़िंदगी बिता रहे हैं. दोस्तों इस उपन्यास को ज़रूर पढ़ें और अपने आस-पास कोई "आसफ़" न पैदा होने दें.
11 comments:
सच कहती हैं कि 'जब आपको किताबों से प्रेम हो और आप पढ़ ना पाएँ तो एक छटपटाहट का अनुभव होता है'।
is kitab ke baare mein aapka likha padh kar mujhe bhi ise padhane ki ichchha ho rahi hai. Apka shodhpark nibandh achchha laga.
Navnit Nirav
किताबों से अच्छा साथी और कोई होता भी नहीं है. अच्छा लिखा. बधाई. निरंतरता बनाए रखें.
तभी समय सार्थक हुआ जब हो पुस्तक मित्र।
दिखलाया इस पोस्ट में अनुपम है वह चित्र।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
A very good comentory on the novel,keep it up.
पढ़्ते रहें
लिखते रह्वे
शुभकामनाएं
मेरे ब्लोग पर स्वागत है
आप सभी ने मेरे ब्लॉग को पढ़ा. अपने उदगारों को व्यक्त करने की जहमत उठाई. इसके लिए मैं आप सबकी आभारी हूँ. आशा है भविष्य में भी आप से यह रिश्ता बना रहेगा.
सुन्दर रचना
Aapka aalekh achha laga. Aap Hosseini saheb ki agli kriti "A Thousand Splendid Summers" padhen aur uske baare mein likhen.Apeksha rahegi.
kitaab ke bare mein suna bahut hai par padhne ka avsar nahin prapta hua. Let's see kab mauqa milta hai.
Post ke oopar heading dalein anyatha aggregator mein ye bina shirshak ke hi post ho jayegi
शुभ विचार
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